Wednesday, August 5, 2009

कालसर्पयोग

कालसर्पयोग
जन्म कुण्डली में यदि राहु और केतु के बीच एक ही तरफ में सभी सातों ग्रह ( सू. , चं. , मं. , बु. , गु. , शु. , श. ) पड़ जाएँ , तो कालसर्प नामक योग बनता है । इस योग में उत्पन्न जातक (पुरूष अथवा स्त्री) को व्यवसाय, धन, परिवार एवं सन्तानादि के कारण विविध परेशानियों एवं दुःखों से पीड़ित रहना पड़ता है।
पूरक प्रकार सर्पयोग:- कालसर्पयोग के दो प्रमुख प्रकार है एक कालसर्पयोग दूसरा अर्धचन्द्रयोग। कालसर्पयोग जातक की उन्नति मे बाधक होता है तो अर्धचन्द्रयोग जातक को सुख समृद्धि प्रदान करता है जन्मांग मे 2 6 8 तथा 11 वे स्थान मे राहू या केतू हो उनके एक ही ऑर एक ही गोलार्द्ध मे सभी ग्रह हों तो कालसर्पयोग बनता है किन्तु इसके विपरीत कुण्डली मे ग्रहस्थिति हो तो कालसर्पयोग न बनकर अर्धचन्द्रयोग बनता है यह अर्धचन्द्रयोग शुभ फल प्रदान करता है राहू- केतू द्वारा सभी ग्रहो की स्थिति निम्न प्रकार की हो तो कालसर्पयोग नही बनता उल्टे विविध प्रकार के शुभ फल देने वाले योग बनते है
लक्षण:- इस योग के लारण जातक को स्वप्नों में सर्प दिखाई देते है, पानी दिखना , अपने - आप को उड़ते हुए देखना , परिवार के किसी सदस्य पर विपत्ति आना , पितृशिव देखना , सर्प और नेवेले की लड़ाई दिखे तो निश्चय ही गृह - कलह हो सकता है। कालसर्प योग का उपाय कर लें । ये सब लक्षण है कि आपकी कुण्डली में कालसर्प या आंशिक कालसर्प योग है । आप अपनी कुण्डली किसी विद्वान ज्योतिषी को दिखाकर उपाय करें। जैसे:- १- सभी ग्रह सप्तम स्थान से प्रथम स्थान तक हो छत्रयोग बनता है। २- सभी ग्रह प्रथम स्थान से सप्तम स्थान तक हो तो नौकायोग बनता है। ३- सभी ग्रह चतु्र्थ स्थान से दशम स्थान तक हो तो कटुयोग बनता है। ४- सभी ग्रह दशम स्थान से चतु्र्थ स्थान तक हो तो सर्पयोग बनता है।
कालसर्प दोष की शान्ति के लिए उपाय
कालसर्प दोष की शान्ति के लिए मुख्य रूप से :
1) ग्रह शान्ति 2) सर्प दोष 3) पितृ दोष एवं नागाबलि एवं शिव पूजन वैदिक पुराणोक्त विधि से किसी योग्य ब्राह्मण द्वारा करवानी चाहिए।
4) विधिपूर्वक महामृत्युञ्जय का जप भी करें।
यादि कुण्डली में कालसर्पयोग पड़ा हो, तो निम्नलिखित किंचित उपाय करने शुभ एवं कल्याणकारी होंगे ।
1) कालसर्प की अरिष्ट शान्ति के लिए शिव मन्दिर में सवा लाख ॐ नमः शिवाय मन्त्र का पाठ करना तथा पाठोपरान्त रूद्राभिषेक करवाने का विशेष महत्त्व है । साथ ही शिवलिंग पर चांदी का सर्प युगल - नागा स्तोत्र एवं नागा पूजनादि कर के चढ़ाना शुभ होगा ।नाग गायत्री मन्त्र - (ॐ ‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍नव कुलाय विधाहे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्पः प्रचोदयात)
2) प्रत्येक शनिवार एक नारियल को तैल एवं काले तिलों का तिलक लगाकर , मौली लपेटकर अपने शिर से तीन बार घुमा कर ॐ भ्रं भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः मन्त्र कम से कम तीन बार पढ़कर चलते पानी में बहा देवें ऐसे कम से कम पाँच शनिवार करें।
3) प्रत्येक शनिवार कुत्तों को दूध और चपाती डालनी तथा गौओं , कौओं को तैल के छीटें देकर रसोई की प्रथम चपातियां डालना शुभ है।
4) कालसर्पयोग के कारण यदि वैवाहिक जीवन में बाधा आती हो , तो जातक पत्नी के साथ दोबारा विवाह करें एवं घर के चौखट द्वार पर चांदी का स्वस्तिक चिन्ह बनवा कर लगवाएं।
5) घर में मयूर पंखका पंखा पवित्र स्थान पर रखें तथा भगवान शिव का ध्यान करते हुए प्रातः उठते ही तथा सोने से पूर्व मयूर पंखेद्वारा हवा करें।
6) प्रत्येक संक्रान्ति को गंगा जल सहित गोमूत्र का छिड़काव घर के सभी कमरों में करें।
7) कालसर्प योग शान्ति के लिए नवनाग देवताओं के नाम का उच्चारण करना चाहिए।
8) महाकुम्भ पर्व के अवसर पर प्रमुख स्नान करें और कुम्भ में स्थित शिव मन्दिर में जाकर विधिपूर्वक पूजन करें ।चाँदी के बने नाग - नागिन के कम से कम 11 जोडे प्रतिदिन शिवलिङग में चढ़ाएँ तथा महादेव से इस कुयोग से मुक्ति से प्रगान करने की प्रार्थना करें।
9) सोना -7 रत्ती , चाँदी - 12 रत्ती , तांबा 16 रत्ती - ये तीनों मिलाकर सर्पाकार अंगूठी अनामिका अंगुली में धारण करने से वांछित लाभ प्राप्त होता है । जिस दिन धारण करें, उस दिन राहु की सामग्री का अंशिक दान भी करना चाहिए।
10) नागपंचमी का व्रत करें तथा नवनाग स्तोत्र का पाठ करें। अनन्त चतुर्दशी का व्रत भी विधिपूर्वक रखें ।
11) प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्र में उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर , राहु का मन्त्र जाप किसी भिखारी को दे देवें । यदि दान लेने वाला कोई ना मिले तो बहते पानी में उस अन्न को छोड़ देना चाहिए । इस प्रकार 72 बुधवार करते रहने से अवश्य लाभ होता है ।
12) यदि किसी स्त्री की कुण्डली इस योग से दूषित है तथा संतित का अभाव है , पूजन - विधि नहीं करवा सकती तो किसी अश्वत्थ (बट) के वृक्ष से नित्य 108 प्रदक्षिणा (घेरे) लगाने चाहिए । तीन सौ दिन में जब 28000 प्रदक्षिणा पूरी होगीं तो दोष दूर होकर वतः ही संतति की प्राप्ति होगी।
13) इसके अतिरिक्त महाकाल रूद्र स्तोत्र , मनसादेवी नाग स्तोत्र , महामृत्युञ्जय आदि स्तोत्रों का विधि - विधान से पूजन , हवन करने से कालसर्प दोष की शान्ति हो जाती है।
सर्पसूक्तमन्त्र:-
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग पुरोगमा:।नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सवर्दा।१।इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकी प्रमुखादय:। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।२।कद्रबेयाश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परामा।नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।३।इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखादय: ।नमोस्तुतेभ्य: सर्पा: सुप्रीता: मम सर्वदा ।५।सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिन च रक्षता।नमोस्तुतेभ्य: सर्पा: सुप्रीता: मम सर्वदा ।६।मलये चैव ये सर्पा: कर्कोतक प्रमुखादय:।नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।७।प्रार्थव्याचैव सर्पेभ्य: ये साकेत वासित।नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।८।सर्वग्रामेषु ये सर्पा वसंतिषु संच्छिता।नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।९।ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पाप्रचरन्ति च।नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।१०।समुन्द्रतीरे ये सर्पाये सर्पाजलवासिन:।नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।११।रसातंलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।१२।।
इस प्रकार स्तुति करके कलश सहित स्वर्ण सर्प ब्राह्मण को दे। आचार्य के लिये गाय दान का विधान है या समतुल्य दक्षिणा दें। अन्त मे ब्राह्मणों से आशीर्वाद लें। इस विधि से सर्प का संस्कार करने पर मनुष्य निरोगी हो जाता है। उत्तम सन्तति को प्राप्त करता है तथा उसे अकाल मृत्यु का भय नही रहता। इसके बाद उत्तर पूजा मे हवन प्रारम्भ करे।

3 comments:

arpit said...

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