Tuesday, November 15, 2011

राशि के स्वामी ग्रह की अनुकूलता (Lord of Rashi)

राशि के स्वामी ग्रह की अनुकूलता के लिए शिवोपासना बेहतर उपाय है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव हर ग्रह की पीड़ा हर सकते हैं शास्त्रों में उल्लिखित है कि जन्मकुंडली में चाहे कितनी भी पीड़ा क्यों न हो, अगर सच्चे मन से शिवोपासना की जाए, तो सभी ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति पाई जा सकती है। विशेषकर शिव के प्रिय मास में भगवान शिव का रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जप बड़ी से बड़ी ग्रह बाधा को भी दूर कर सकता है। इस मास में शिवोपासना के साथ राशि के स्वामी ग्रह को प्रबल बनाकर जीवन में सुख-शांति और समृद्धि पाई जा सकती है।


मेष राशि के जातक अगर अपने ग्रह स्वामी मंगल को शांत रखने के लिए श्रावण मास में प्रत्येक मंगलवार अथवा पूरे मास में बेलपत्र पर सफेद चंदन से श्रीराम लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करें, तो इन्हें शिव कृपा मिलती है।

वृष राशि के जातक यदि ग्रह स्वामी शुक्र को शांत रखने के लिए शुक्रवार का व्रत रखें और शिवलिंग का दूध-दही से अभिषेक करें तथा भगवान का सफेद चंदन से तिलक करें, तो लाभ होगा। साथ ही हरशृंगार के फूलों से बनी माला भी भगवान को अर्पित करें, तो कार्यों में बाधा नहीं आएगी।

मिथुन राशि वालों को बुध ग्रह की प्रसन्नता के लिए श्रावण मास में भगवान शिव का शहद से रुद्राभिषेक करना चाहिए। इसके बाद गाय को हरी घास खिलाने से वर्ष भर आर्थिक संपन्नता बनी रहती है।

कर्क राशि के जातक चंद्रमा की शांति के लिए श्रावण मास में भगवान शिव को दूध, दही, गंगाजल व मिश्री से स्नान कराएं। इससे उनका चित्त भी शांत रहेगा और बाधाएं भी दूर होंगी।।

सिंह राशि वाले जातक स्वामी ग्रह सूर्य की प्रसन्नता हेतु श्रावण मास में शुद्ध देसी घी से भगवान शिव को स्नान कराएं, तो वह सदैव अपने शत्रुओं से सुरक्षित रहेंगे। साथ ही आर्थिक संकट से भी बचे रहते हैं।

कन्या राशि वाले बुध ग्रह की प्रसन्नता के लिए श्रावण मास में दूध और शहद से भगवान शिव का अभिषेक करें। इसके बाद बेलपत्र, मदार के पुष्प, धतूरा एवं भांग अर्पित करें, तो अपयश अथवा आर्थिक हानि से पूर्णत: बच सकते हैं।

तुला राशि वाले जातक शुक्र ग्रह को खुश करने के लिए श्रावण मास में दही और गन्ने के रस से शिवलिंग को स्नान कराएं तथा पूजन के बाद गरीबों को मिश्री दान करें, तो पूरे वर्ष समस्याओं से लड़ने की शक्ति मिलेगी।

वृश्चिक राशि के जातक अगर मंगल ग्रह को खुश करना चाहते हैं, तो श्रावण मास में शिवलिंग पर तीर्थस्थान का जल तथा दूध में शक्कर एवं शहद मिलाकर स्नान कराने के बाद रक्त चंदन से तिलक करें, तो लाभ मिलता है और शत्रु परास्त होते हैं।

धनु राशि के जातक बृहस्पति ग्रह को अनुकूल बनाने के लिए श्रावण मास में कच्चे दूध में केसर, गुड़ व हल्दी मिलाकर शिवलिंग को स्नान कराएं। तत्पश्चात हल्दी व केसर से तिलक करें, तो वह आर्थिक संकट में नहीं फंसते। विद्यार्थी वर्ग को भी लाभ होता है।

मकर राशि के जातक अपने स्वामी ग्रह शनि को प्रसन्न करने के लिए घी, शहद, दही और बादाम के तेल से शिव का अभिषेक करें तथा नारियल के जल से स्नान कराकर नीले पुष्प अर्पित करें, तो शत्रुबाधा एवं मानसिक कष्ट से राहत मिलती है।

कुंभ के जातक यदि इस मास में भगवान शिव को भस्म मिश्रित गंगाजल से स्नान कराने के बाद सरसों के तेल का तिलक लगाएं, तो ये शारीरिक कष्ट, धनहानि, पारिवारिक कष्ट आदि बाधाओं से बचते हैं।

मीन राशि के जातक अपने ग्रह स्वामी बृहस्पति की कृपा पाने के लिए यदि श्रावण मास में भगवान शिव को कच्चे दूध में हल्दी मिलाकर अर्पित करें और इसके बाद केसर का तिलक करें। पीले पुष्प तथा केसर के रेशे अर्पित करें, तो इन्हें समस्त सुख मिलते हैं।

वक्री ग्रह शुभ फल देते हैं

सौर सिद्धांत के अनुसार ग्रह को अपनी-अपनी कक्षा में भ्रमण करते हुए विभिन्न प्रकार की गति मिलती है। मसलन वक्रा, अति वक्रा, शीघ्रा, शीघ्रा-तरा, मंद, मंतरा, सम, कुटिल आदि। यहां वक्र गति का अर्थ है, ग्रहों का अपने भ्रमण पथ पर उल्टी गति से चलना। पर वास्तव में ग्रह उल्टे चलते नहीं हैं। पृथ्वी की गति तथा ग्रह की गति के भेद एवं उस ग्रह की पृथ्वी से विशेष दूरी पर स्थित होने की वजह से ही वह वक्री प्रतीत होता है। वैसे नौ ग्रहों में सूर्य और चंद्र कभी वक्री नहीं होते। राहु तथा केतु सदा वक्री चलते हैं।

•अगर वक्री ग्रह अपनी उच्च राशि में स्थित हो, तो अपनी नीच राशि में होने का फल देता है। पर नीच राशि में वक्री ग्रह अपनी उच्च राशि का शुभ फल देता है।
•यदि वक्री ग्रह के साथ कोई ग्रह स्थित हो, तो उसके सानिध्य में वह और बलवान हो जाता है। इस वजह से जातक को शुभ अथवा अशुभ फल मिलता है।
•यदि अशुभ ग्रह अशुभ भाव में वक्री हो, तो अशुभता में वृद्धि हो जाती है। परंतु शुभ भाव में अशुभता में कमी आ जाती है।
•यदि कुंडली में लग्नेश केंद्रस्थ होकर वक्री हो जाए, तो यह अत्यंत शुभकारी होता है।
•इसी प्रकार वक्री ग्रह का संबंध यदि सप्तम भाव से है, तो जातक के विवाह में विलंब होता है।
•अगर वक्री ग्रह का संबंध केंद्र या त्रिकोण से हो अथवा त्रिकोण, केंद्र का स्वामी वक्री होकर शुभ भाव में पहुंच जाए, तो यह जातक की कुंडली में अति शुभ फल का संकेत है।
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सभी नौ ग्रहों का अलग-अलग प्रभाव माना जाता है। मान्यता यह भी है कि व्यक्ति अपने जीवन में जो कुछ भी हासिल करता है, उसमें ग्रह विशेष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। खासकर कैरियर के मामले में तो ग्रहों को ज्यादा उत्तरदायी माना जाता है। यानी ग्रह की भूमिका ही हमारे जीवन में कैरियर की दिशा तय करती है। ऐसे में अगर ग्रह की कृपा हुई, तो जातक शिक्षक भी बन सकते हैं या चिकित्सा के क्षेत्र में भी सफलता का परचम लहरा सकते हैं।




शिक्षक

एक अच्छे शिक्षक की कुंडली पर बृहस्पति ग्रह की कृपा होनी आवश्यक है। ऐसा इसलिए क्योंकि यही ग्रह शिक्षा पर राज करता है। कुंडली में चौथा घर जातक के जीवन में शैक्षणिक दृष्टि से ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। शिक्षक का काम केवल बच्चों को पढ़ाना ही नहीं, बल्कि बच्चों को संभालना भी होता है, ऐसे में कुंडली में पांचवां घर भी महत्वपूर्ण हो जाता है।




डॉक्टर

यह दुनिया का सबसे चर्चित प्रोफेशन है। इस प्रोफेशन में जाने को इच्छुक लोगों पर भी बृहस्पति की विशेष कृपा होनी आवश्यक है। वैसे भी बृहस्पति को प्रोफेशनल्स का ग्रह कहा जाता है। कुंडली में दसवां या पांचवां घर आरोग्य का माना जाता है, जिससे इस ग्रह का गहरा संबंध है। साथ ही अगर किसी जातक की कुंडली में 12वें घर में यह ग्रह मजबूती से बैठा हो, तो जातक के चिकित्सक बनने के मौके बढ़ जाते हैं।




संगीत

किसी भी जातक को संगीत के क्षेत्र में कुछ अच्छा करने के लिए शुक्र ग्रह की कृपा आवश्यक होती है। अगर कुंडली में तीसरे घर में शुक्र है, तो जातक खुद ही कला के क्षेत्र में उच्चतम योग्यता हासिल करता है। वैसे शास्त्रीय गायन में बृहस्पति ग्रह की भूमिका रहती है। जबकि रॉक और आधुनिक गायन में राहु से मदद मिलती है। इसी प्रकार संगीत वाद्यों को बजाने महारत हासिल करने में बुध ग्रह और गायन के लिए चंद्रमा का बलवान होना आवश्यक होता है।




आर्किटेक्ट

भूमि और घर का संबंध जातक की कुंडली में चौथे घर से होता है, पर इनके साथ मंगल और शनि को भी शुभ स्थान पर होना चाहिए। मंगल इमारतें बनाने की क्षमता विकसित करता है, जबकि शनि को भूखंड का ग्रह माना जाता है। बृहस्पति ग्रह जातक को इस क्षेत्र में आगे बढ़ने में अतिरिक्त योग्यता भी दे सकता है।




योगशास्त्री

आजकल योग में भी कैरियर है। इस प्रोफेशन में जाने के लिए किसी भी व्यक्ति को कुछ ग्रहों की एक साथ सकारात्मकता की आवश्यकता होती है। अच्छे आत्मविश्वास के लिए पहले घर में ग्रहों की कृपा होनी चाहिए। साथ ही दूसरे घर पर ग्रहों की कृपा हो, तो जातक परिवार एवं धन से संपन्न होता है। इसके अलावा चौथे, पांचवें और सांतवें घर में ग्रहों की शुभता हो, तो यह जातक की शादी का संकेत देता है।




प्रबंधन

अगर जातक की कुंडली में पहला, पांचवां और दसवां घर मजबूत स्थिति में है, तो प्रबंधन के क्षेत्र में जातक अच्छा टीम लीडर बन सकता है। साथ ही सूर्य की शुभता मिल जाए, तो जातक को आगे बढ़ने में मदद मिलती है। मंगल की शुभता की भी आवश्यकता होती है।




खेल

खिलाड़ी बनने के लिए मंगल ग्रह की शुभता की ज्यादा आवश्यकता होती है। साथ ही उत्साह के लिए तीसरे, खेल के चुनाव के लिए तीसरे और प्रतिद्वंद्वी क्षमता में बढ़ोतरी के लिए छठे घर का मजबूत होना जरूरी है। खिलाड़ी जातक की कुंडली में बुध ग्रह का मजबूत होना जरूरी होता है।

प्रोफेशन कोई भी हो, ग्रहों की कृपा आवश्यक रूप से चाहिए। ऐसे में कोई भी ग्रह किसी भी जातक के लिए कैरियर बनाने में महत्वपूर्ण हो सकता है

शक्तिशाली रोग निवारक मंत्र

शक्तिशाली रोग निवारक मंत्र

मनुष्य के जीवन में तरह-तरह की शारीरिक व्याधियां आती जाती रहती हैं। विभिन्न रोगों से ग्रसित मनुष्य डॉक्टर, वैद्य और हकीम के चक्कर लगाने को मजबूर होता है और धनाभाव के कारण कभी-कभी उचित उपचार से वंचित भी रह जाता है। ऐसी दशा में शक्तिशाली रोग निवारक मंत्र का जप फलदायी होता है।

‘ॐ क्री क्षं सं सं स:’, मंत्र 108 बार जप कर गाय के घी को अभिमंत्रित कर लें। अभिमंत्रित घी का एक पल की मात्रा में एक माह तक प्रतिदिन दान करने और उसके बाद मधु पान करने से सब प्रकार के रोग खत्म हो जाते हैं। यदि इस घी को पीने के बाद एक माह तक गाय का दूध पिया जाए, तो आंखों की रोशनी बढ़ती है। यदि इस घृत को चावल के लड्डू के साथ सेवन किया जाए, तो शूल रोग का नाश होता है। अथवा इस घी को गन्ने के रस के साथ नियमित सेवन करने से रोगी की अनेक व्याधियां नष्ट होती हैं।

‘क्रीं’ मंत्र को 108 बार उच्चरित करने के बाद एक कटोरी गंगा जल को इस मंत्र से 21 बार अभिमंत्रित कर रोगी को पिलाने से शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। यह प्रक्रिया सात दिन तक निरंतर करनी चाहिए।

यदि ‘क्रीं हूं, ह्रीं,’ मंत्र का उच्चारण कर सात बार श्री महाकाली देवी को चावल अर्पित किए जाएं, तो भय का नाश होता है।

नागेश्वर की जड़ को मधु यानी शहद के साथ ‘ॐ नम: दर्शनाय’ का उच्चारण करते हुए घिसे और उदर रोगी को पिला दें, तो लाभ होता है।

यदि ‘ॐ शक्तिदाय नम:’ मंत्र का 108 बार उच्चारण पुनर्नवा का रस व गाय के घी को अभिमंत्रित कर सेवन करें, तो आंखों की ज्योति बढ़ती है।

राशि के अनुसार कैसा रहेगा, शनिदेव का घर बदलना

नवंबर का माह की 15 तारीख को शनिदेव अपनी राशि बदल रहे हैं। इस बार शनिदेव अपनी उच्च राशि तुला में प्रवेश करेंगे। इससे पहले वह कन्या राशि में विराजमान थे। ऐसे में कई जातकों को इनकी कृपा मिलेगी, तो कुछ जातकों को अपने कर्मों का फल भी मिलेगा। आप यह मत सोचना की शनि क्या कर लेगा? क्योकि शनि ही इस समय राजा को रंक और रंक को राजा बनाता हैं। अत: बुरा कर्म करने वाले सावधान! तीना चीज कभी अंडर एस्टीमेट मत करना।

"पिंगलाय, कृष्णाय, शनैश्चर"

मेष- तुला राशि में बैठे शनि की पूर्ण दृष्टि मेष राशि पर रहेगी। इसलिए इस राशि वाले जातकों का कार्य धीमी गति से चलेगा। पर परिस्थिति में सुधार होगा। अगर मेष का स्वामी मंगल कमजोर है, तो उसे बलवान करने का उपाय करें।

वृष - यह राशि शनि से अष्टम और वृषभ से शनि छठे स्थान पर होने के कारण, तुला का शनि, वृषभ राशि वालों को शुभ फल नहीं देगा। तुला का शनि, वृषभ राशि वालों को गृह क्लेश, मानसिक अस्थिरता प्रदान करेगा।

मिथुन - इस राशि से शनि पंचम और शनि से मिथुन राशि नवम होगी। अत: मिथुन राशि वालों को शनि शुभ फल प्रदान करेगा। विपरीत परिस्थितियों में सुधार होगा। अटके हुए कार्य पूर्ण होंगे। मन प्रसन्न व उत्साहित रहेगा।

कर्क - कर्क राशि से शनि चतुर्थ होगा और शनि से कर्क राशि दशम होगी। इसलिए शुभ फलों की प्राप्ति प्रचुर मात्रा में इस राशि के जातकों को मिलेगी। बेरोजगारों को आजीविका मिलेगी। वैवाहिक जीवन सफलतापूर्वक चलेगा।

सिंह - शनि की तुला राशि में आने पर सिंह के जातकों को लाभ ही होगा। 16 नवंबर तक इस राशि वालों को कष्ट है। इसके बाद अचानक धन लाभ, प्रतियोगिता आदि में सफलता, कार्य पूर्ण होने के योग हैं।

कन्या - दैवीय कृपा की प्राप्ति तुला का शनि देगा। व्यापार अथवा नौकरी के लिए किए गए सफल होंगे। सुख-शांति की अनुभूति होगी।

तुला - यह परिवर्तन तुला राशि वालों के लिए निराशाजनक स्थिति लेकर आएगा। रोगों से सावधान रहें, रक्तचाप, पेट संबंधी समस्याएं आदि से परेशानी होगी। व्यापार या नौकरी में गतिरोध उत्पन्न होगा।

वृश्चिक - इस राशि के जातकों को तुला का शनि मालामाल कर देगा। व्यापार बढ़ेगा, नवीन वाहन आदि लेने का योग है। शत्रुओं को परास्त करने में सफलता मिलेगी। आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।

धनु - तुला का शनि धनु राशि वालों के लिए भी लाभदायक रहेगा। रुके या अटके कार्य पूरे होंगे। भूमि या संतान लाभ होगा। कोई प्रिय वस्तु दूर हो सकती है।

मकर - तुला का शनि मकर राशि वालों को शुभ फल नहीं देगा। धन या वस्तु, भूमि आदि की हानि हो सकती है। खर्च बढ़ेंगे। चोट-चपेट से सावधान रहें।

कुंभ - इस राशि वालों को भी तुला का शनि शुभ फल नहीं देगा। खान-पान में व्यवधान, धन हानि, शत्रुओं से कष्ट आदि की आशंका है।

मीन - तुला में शनि के आने के बाद मीन राशि के जातक शांति महसूस करेंगे। रोगों से छुटकारा मिलेगा, धन लाभ होगा और धर्म-कर्म में रुचि बढ़ेगी। यश मिलेगा।


शनिवार के दिन नारियल तेल में कपूर मिलाकर अपने शरीर पर मालिश करें। मालिश 21 या 51 शनिवार तक करें। 21 शनिवार तक साबुत काले उड़द सूर्यास्त के समय शनि मंत्र "ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:" बोलकर नदी में प्रवाहित करें।

प्रत्येक शनिवार को "ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनैश्चराय" मंत्र का 108 की संख्या में जप करें। साथ ही महामृत्युंजय मंत्र का भी 24 की संख्या में जप करें। वैसे पीपल के वृक्ष की पूजा भी शनिदेव की कृपा पाने के लिए अत्यंत लाभकारी उपाय माना जाता है। पीपल के वृक्ष को पितृ वृक्ष भी कहते हैं। इसके नीचे तेल का एक दीपक जलाएं, जल अर्पित करें और शिव मंदिर जाएं। शनिदेव की कृपा मिलेगी। हर शनिवार गरीबों को कचौरियां खिलाएं। अगर शनि मंदिर जा सकें, तो अतिउत्तम है।

महर्षि पिप्लाद ने इनकी संतुष्टि के लिए दस नामों की रचना की है। इन नामों का उच्चारण प्रतिदिन प्रातः काल स्नान करके करने से शनि की प्रतिकूलता, उनकी साढ़े साती, उनकी ढैया में किसी प्रकार का कष्ट नहीं होकर उनकी कृपा होती है।

नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय नमोऽस्तुते।

नमस्ते बभ्रुरुपाय कृष्णाय नमोऽस्तुते॥

नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकायच।

नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो॥

नमस्ते मंदसंज्ञाय शनैश्चर नमोऽस्तुते।

प्रसादं कुरू देवेश दीनस्य प्रणतस्य च॥

शनि से बचाएंगे हनुमान : हनुमान चालिसा

कुछ ही दिनों में सबसे शक्तिशाली और प्रभावी शनि महाराज अपनी राशि बदल रहे हैं. शनि 15 नवंबर को कन्या राशि से तुला में जाएगा। अत: शनि के राशि बदलने से सभी राशि वाले लोगों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। शनि की स्थिति बदलने से आप पर कोई बुरा प्रभाव न पड़े इसके लिए हनुमानजी की आराधना सर्वश्रेष्ठ उपाय है।


हनुमानजी की भक्ति करने वाले भक्तों को शनि अशुभ फल प्रदान नहीं करता है। इसी वजह प्रति मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। आपकी राशि जो भी हो, यह उपाय सभी के लिए श्रेष्ठ है। कुछ ही मिनट की ये उपासना आपको शनि के अशुभ प्रभावों से बचा लेगी।


हनुमानजी की भक्ति का सर्वोत्तम और सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का जप। प्रतिदिन कुछ समय श्रीरामजी के अनन्य भक्त पवनपुत्र हनुमानजी का ध्यान करने से जीवन खुशियोंभरा हो जाता है। यहां हनुमान चालीसा दी जा रही है जिसका जप आप किसी भी समय कर सकते हैं। मन को शांति मिलेगी।

हनुमान चालिसा


दोहा- श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥

बुध्दिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥


चौपाई


जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपिस तिहुँ लोक उजागर॥

रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै कांधे मूँज जनेऊ साजै॥

संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥

बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लषन सीता मन बसिया॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचंद्र के काज सँवारे॥

लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा॥

तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥

दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना॥

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

संकट तें हनुमान छुडावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥

सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥

और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥

चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥

साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥

राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥

अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेंइ सर्ब सुख करई॥

संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरु देव की नाईं॥

जो सत बर पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥

जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

दोहा- पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लषन सीता सहित,हृदय बसहु सुर भूप॥