Tuesday, November 15, 2011

शनि से बचाएंगे हनुमान : हनुमान चालिसा

कुछ ही दिनों में सबसे शक्तिशाली और प्रभावी शनि महाराज अपनी राशि बदल रहे हैं. शनि 15 नवंबर को कन्या राशि से तुला में जाएगा। अत: शनि के राशि बदलने से सभी राशि वाले लोगों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। शनि की स्थिति बदलने से आप पर कोई बुरा प्रभाव न पड़े इसके लिए हनुमानजी की आराधना सर्वश्रेष्ठ उपाय है।


हनुमानजी की भक्ति करने वाले भक्तों को शनि अशुभ फल प्रदान नहीं करता है। इसी वजह प्रति मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। आपकी राशि जो भी हो, यह उपाय सभी के लिए श्रेष्ठ है। कुछ ही मिनट की ये उपासना आपको शनि के अशुभ प्रभावों से बचा लेगी।


हनुमानजी की भक्ति का सर्वोत्तम और सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का जप। प्रतिदिन कुछ समय श्रीरामजी के अनन्य भक्त पवनपुत्र हनुमानजी का ध्यान करने से जीवन खुशियोंभरा हो जाता है। यहां हनुमान चालीसा दी जा रही है जिसका जप आप किसी भी समय कर सकते हैं। मन को शांति मिलेगी।

हनुमान चालिसा


दोहा- श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥

बुध्दिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥


चौपाई


जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपिस तिहुँ लोक उजागर॥

रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै कांधे मूँज जनेऊ साजै॥

संकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥

बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लषन सीता मन बसिया॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचंद्र के काज सँवारे॥

लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा॥

तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना। लंकेस्वर भए सब जग जाना॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥

दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना॥

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै॥

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

संकट तें हनुमान छुडावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥

सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा॥

और मनोरथ जो कोइ लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै॥

चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा॥

साधु संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता॥

राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा॥

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै॥

अंत काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेंइ सर्ब सुख करई॥

संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरु देव की नाईं॥

जो सत बर पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महा सुख होई॥

जो यह पढ़ै हनुमान चलीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

दोहा- पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लषन सीता सहित,हृदय बसहु सुर भूप॥

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