Friday, May 14, 2010

नवदुर्गा के रूपों से औषधि उपचार (2)

चतुर्थ कुष्माण्डा (पेठा) - दुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। ये औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हडा भी कहते हैं। यह कुम्हड़ा पुष्टिकारक वीर्य को बल देने वाला (वीर्यवर्धक) व रक्त के विकार को ठीक करता है। एवं पेट को साफ करता है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। यह दो प्रकार की होती है। इन बीमारी से पीड़ित व्यक्ति ने पेठा का उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी की आराधना करना चाहिए।

पंचम स्कंदमाता (अलसी) - दुर्गा का पाँचवा रूप स्कंद माता है। इसे पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी के रूप में जानी जाती है। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है।

अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।
अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।

इस रोग से पीड़ित व्यक्ति ने स्कंदमाता की आराधना करना चाहिए।

षष्ठम कात्यायनी (मोइया) - दुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। इस आयुर्वेद औषधि में कई नामों से जाना जाता है। जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका इसको मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है। इससे पीड़ित रोगी ने कात्यायनी की माचिका प्रस्थिकाम्बष्ठा तथा अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका, खताविसार पित्तास्त्र कफ कण्डामयापहस्य।

सप्तम कालरात्रि (नागदौन) - दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है।
इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगा ले तो घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली एवं सभी विषों की नाशक औषधि है। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करना चाहिए।

अष्टम महागौरी (तुलसी) - दुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है। जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है। तुलसी सात प्रकार की होती है। सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक, षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है। रक्त शोधक है एवं हृदय रोग का नाश करती है।

तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।
अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्‍नी देवदुन्दुभि:
तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् ।
मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।

इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करना चाहिए।

नवम सिद्धदात्री (शतावरी) - दुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है। जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। रक्त विकार एवं वात पित्त शोध नाशक है। हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिधात्री का जो मनुष्ट नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करना चाहिए।

इस प्रकार प्रत्येक देवी आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित एवं साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करती है। अत: मनुष्य को इनकी आराधना एवं सेवन करना चाहिए।

नवदुर्गा के रूपों से औषधि उपचार (1)

नवदुर्गा के रूपों से औषधि उपचार

नवरात्रि में माँ दुर्गा के औषधि रूपों का पूजन करें

माँ जगदम्बा दुर्गा के नौ रूप मनुष्य को शांति, सुख, वैभव, निरोगी काया एवं भौतिक आर्थिक इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं। माँ अपने बच्चों को हर प्रकार का सुख प्रदान कर अपने आशीष की छाया में बैठाकर संसार के प्रत्येक दुख से दूर करके सुखी रखती है।

जानिए नवदुर्गा के नौ रूप औषधियों के रूप में कैसे कार्य करते हैं एवं अपने भक्तों को कैसे सुख पहुँचाते हैं। सर्वप्रथम इस पद्धति को मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया परंतु गुप्त ही रहा। भक्तों की जिज्ञासा की संतुष्टि करते हुए नौ दुर्गा के औषधि रूप दे रहे हैं। इस चिकित्सा प्रणाली के रहस्य को ब्रह्माजी ने अपने उपदेश में दुर्गाकवच कहा है। नौ प्रमुख दुर्गा का विवेचन किया है। ये नवदुर्गा वास्तव में दिव्य गुणों वाली नौ औषधियाँ हैं।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,
तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेती चतुर्थकम।।
पंचम स्कन्दमा‍तेति षुठ कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौ‍र‍ति चाष्टम।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।

ये औषधियाँ प्राणियों के समस्त रोगों को हरने वाली और रोगों से बचाए रखने के लिए कवच का काम करने वाली है। ये समस्त प्राणियों की पाँचों ज्ञानेंद्रियों व पाँचों कमेंद्रियों पर प्रभावशील है। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष की आयु भोगता है।

ये आराधना मनुष्य विशेषकर नौरात्रि, चैत्रीय एवं अगहन (क्वार) में करता है। इस समस्त देवियों को रक्त में विकार पैदा करने वाले सभी रोगाणुओं को काल कहा जाता है।

प्रथम शैलपुत्री (हरड़) - प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। इस भगवती देवी शैलपुत्री को हिमावती हरड़ कहते हैं।
यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है जो सात प्रकार की होती है। हरीतिका (हरी) जो भय को हरने वाली है। पथया - जो हित करने वाली है।
कायस्थ - जो शरीर को बनाए रखने वाली है। अमृता (अमृत के समान) हेमवती (हिमालय पर होने वाली)।चेतकी - जो चित्त को प्रसन्न करने वाली है। श्रेयसी (यशदाता) शिवा - कल्याण करने वाली ।

द्वितीय ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) - दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी को ब्राह्मी कहा है। ब्राह्मी आयु को बढ़ाने वाली स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों को नाश करने के साथ-साथ स्वर को मधुर करने वाली है। ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है।

क्योंकि यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है। यह वायु विकार और मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति ने ब्रह्मचारिणी की आराधना करना चाहिए।

तृतीय चंद्रघंटा (चन्दुसूर) - दुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चनदुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। (इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है। ये कल्याणकारी है। इस औषधि से मोटापा दूर होता है। इसलिए इसको चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, खत को शुद्ध करने वाली एवं हृदयरोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है।अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी ने चंद्रघंटा की पूजा करना चाहिए।

Wednesday, May 12, 2010

नवदुर्गास्तोत्र

नवदुर्गास्तोत्र

SHAILPUTRI (The Daughter of Mountain)

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरां ।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीं ॥. [1]

BRAHMACHARINI (Penance Doer)

दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥ [2]

CHANDRAGHANTA (Lunargong)

पिण्डजप्रवरारूढा चन्दकोपास्त्रकैर्युता ।
प्रसादं तनुते मह्मं चन्द्रघण्देति विश्रुता ॥ [3]

KUSHMANDA (Cosmic Egg Layer)

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च ।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥ [4]

SKANDAMATA (The Mother of Skanda)

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ॥[5]

KATYAYANI DEVI (The Daughter of Katyayana)

चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी ॥ [6]

KALRATRI (Deadly Night)

एकवेणी जपाकर्णपूर नग्ना खरास्थिता ।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा ।
वर्धनमुर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी ॥ [7]

MAHAGAURI (The White Force)
श्र्वेते वृषे समारूढा श्र्वेताम्बरधरा शुचिः ।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ॥ [8]

SIDDHIDATRI (Boon Giver)
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि ।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धीदा सिद्धीदायिनी ॥ [9]

माँ दुर्गा देवि क्षमा प्रार्थना

माँ दुर्गा देवि क्षमा प्रार्थना

This eulogy or stuti is a part of Durga Saptashati. Usually, when the prayers are ordinarily done, we make mistakes in the prayer methods (incorrect pronunciation, for instance). This eulogy is sung in the end to ask for forgiveness and for any mistakes or incomplete offerings.

अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेsहर्निशं मया ।

दासोsयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्र्वरि ॥ १
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।

पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्र्वरि ॥ २
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्र्वरि ।

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥ ३
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् ।

यां गतिं सम्वान्पोते न तां ब्रह्मादयः सुरा: ॥ ४
सापाराधोsस्मि शरणं प्राप्पस्त्वां जगदम्बिके ।

इदानीमनुकम्प्योsहं यथेच्छसि तथा कुरू ॥ ५
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् ।

तत्सर्व क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्र्वरि ॥ ६
कामेश्र्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे ।

गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्र्वरि ॥ ७
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।

सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्र्वरि ॥ ८

Mantra to be Recited on your Birthday

Mantra to be Recited on your Birthday

Recite these Mantras on your Birthday, and feel blessed. Here is the Mantra for your Auspicious Birthday in devanagari .


ॐ मम जन्मनक्षत्रा नमः ‌‌।

ॐ जन्मराशाये नमः ।

ॐ जन्मतिथये नमः ।

ॐ जन्मवासराय नमः ।

ॐ जन्मपक्षाय नमः ।

ॐ जन्मलग्नाय नमः ।

ॐ जन्मसंवत्सराय नमः ।

ॐ जन्मऋतवे नमः ।

ॐ जन्मयुगाय नमः ।

ॐ जन्ममासाय नमः ।

ॐ जन्ममुहु्र्तय नमः ।

ॐ जन्मकरणाय नमः ।

ॐ प्रजापतये नम: ।

ॐ ब्रह्नमणे नमः ।

ॐ विष्णवे नमः ।

ॐ शिवाय नमः ।

ॐ कुलदेवतायै नमः ।

ॐ ग्रामदेवताभ्येा नमः ।

ॐ इष्टदेवताभ्येा नमः ।

ॐ क्षत्रपालाय नमः ।

ॐ वास्तुपुरुषाय नमः ।

ॐ सप्तर्षिभ्येा नमः ।

ॐ सर्वेभ्येा देवेभ्येा नमः ।

॥इति पुजा॥

Durga Beej Mantra (दुर्गा)




Durga Beej Mantra (दुर्गा)

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।

इस मन्त्र के बिना देवी से संबंधित का कोई भी अनुष्ठान सफल एवं सिद्ध नहीं हो पाता ।

देवी के मन्त्र जाप के समय शुद्ध एवं पवित्र रहें ।

देवी के मन्त्र जाप में रुद्राक्षकी माला एवं रात्रि का समय उचित है।

9 Names of Nava Durga (नव दुर्गा देवी)

9 Names of Nava Durga (नव दुर्गा देवी)



ॐ श्री दुर्गाय नमः


प्रथमं शैलपुत्रीति द्बितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रिश्र्च महागौरीति चाष्टमम् ।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ॥

Guru Stotram (गुरु स्तोत्रम्) - Prayer to Divine Teacher

Guru Stotram (गुरु स्तोत्रम्) - Prayer to Divine Teacher

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् |

एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभूतम् भावतीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि ||
I prostrate myself before that Guru, the Bliss of Brahman, the bestower of Supreme Happiness, who is Knowledge absolute, transcending the pairs of opposites, expansive like the sky, the goal indicated by the great sayings like “Thou art That”, the one eternal, pure, unchanging, the witness of functions of the intellect, who is above all Bhavas (mental conditions) and the three Gunas (Sattva, Rajas and Tamas).

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to the noble Guru,, who has made it possible to realise the state which pervades the entire cosmos, everything animate and inanimate.

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to the noble Guru, who has opened the eyes blinded by darkness of ignorance with the collyrium-stick of knowledge.

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to the noble Guru, who is Brahma, Vishnu and Maheswara, the direct Parabrahma, the Supreme Reality.

स्थावरं जंगमं व्याप्तं यत्किंचित्सचराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to the noble Guru, who has made it possible to realise Him, by whom all that is - sentient and insentient, movable and immovable is pervaded.

चिन्मयं व्यापियत्सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to the noble Guru, who has made it possible to realise Him pervades everything, sentient and insentient, in all three worlds.

सर्वश्रुतिशिरोरत्नविराजित पदाम्बुजः ।
वेदान्ताम्बुजसूर्योयः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to the noble Guru, whose lotus feet are radient with (the luster of) the crest jewel of all Srutis and who is the sun that causes the Vendanta Lotus (knowledge) to bloosom.

चैतन्यः शाश्वतःशान्तो व्योमातीतो निरंजनः ।
बिन्दुनाद कलातीतः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to the noble Guru,who is the ever effulgent, eternal, peaceful, beyond space, immaculate, and beyond the manifest and unmanifest.

ज्ञानशक्तिसमारूढः तत्त्वमालाविभूषितः ।
भुक्तिमुक्तिप्रदाता च तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to that noble Guru, who is established in the power of knowledge, adorned with the garland of various principles and is the bestower of prospority and liberation.

अनेकजन्मसंप्राप्त कर्मबन्धविदाहिने ।
आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to the noble Guru, who by bestowing the knowledge of the Self burns up the bondage created by accumulated actions of innumerable births.

शोषणं भवसिन्धोश्च ज्ञापणं सारसंपदः ।
गुरोः पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to the noble Guru, by washing whose feet, the ocean of transmigration, endless sorrows is completely dried up and the Supreme wealth is revealed.

न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः ।
तत्त्वज्ञानात्परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to the noble Guru, beyond whom there is no higher truth, there is no higher penance and there is nothing higher attainable than the true knowledge.

मन्नाथः श्रीजगन्नाथः मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः ।
मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to the noble Guru, who is my Lord and the Lord of the Universe, my Teacher and the Teacher of the Universe, who is the Self in me and the Self in all beings.

गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम् ।
गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
Salutation to the noble Guru, who is both the beginning and beginningless, who is the Supreme Deity than whom there is none superior.

त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥
(Oh Guru!) You are my mother and father; you are my brother and companion; you alone are knowledge and wealth. O Lord, you are everything to me.

बिष्णु – वन्दना

बिष्णु – वन्दना

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्यनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

मंगलस्वरूप बिष्णु - Auspicious Lord Vishnu

मंगलस्वरूप बिष्णु - Auspicious Lord Vishnu

मंगलस्वरूप बिष्णु

मंगल भगवान् बिष्णुः मंगल गरूडध्वजः ।

मंगल पुण्डरीकाक्षो मंगलायतनो हरिः ॥


This Script is mostly seen in invitation cards for auspicios functions such as marriage.


The main theme of this script is that everything that is HARI is auspicious. In short, HARI name is auspicious.

बिष्णुस्तुति ( नारायण नारायण हरि हरि )

बिष्णुस्तुति

सनत्कुमार उवाच :-
यस्य हस्ते गदा चक्र गरुडो यस्य बाहनम् ।
शङ्खः करतले यस्य स मे बिष्णु प्रसीदतु ॥
भावार्थ: जसको हातमा गदा र चक्र छ; जसको गरुड बाहन छ; जसको हातमा शङ्ख छ; त्यस्ता बिष्णु भगवान् मप्रति प्रसन्न होऊन् ।

नारायण नारायण हरि हरि

श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
तेरि लीला सब से न्यारि न्यारि हरि हरि
भजमन नारायण नारायण हरि हरि
जय जय नारायण नारायण हरि हरि
हरि ॐ नमो नारायण
ॐ नमो नारायण ॥

लक्ष्मी नारायण नारायण हरि हरि
बोलो नारायण नारायण हरि हरि
भजमन नारायण नारायण हरि हरि
जय जय नारायण नारायण हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
तेरि लीला सब से न्यारि न्यारि हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
हरि ॐ नमो नारायण
ॐ नमो नारायण ॥

सत्य नारायण नारायण हरि हरि
जपो नारायण नारायण हरि हरि
भजमन नारायण नारायण हरि हरि
जय जय नारायण नारायण हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
तेरि लीला सब से न्यारि न्यारि हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
हरि ॐ नमो नारायण
ॐ नमो नारायण ॥

सूर्य नारायण नारायण हरि हरि
बोलो नारायण नारायण हरि हरि
भजमन नारायण नारायण हरि हरि
जय जय नारायण नारायण हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
तेरि लीला सब से न्यारि न्यारि हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
हरि ॐ नमो नारायण
ॐ नमो नारायण ॥

विष्णु नारायण नारायण हरि हरि
जपो नारायण नारायण हरि हरि
भजो नारायण नारायण हरि हरि
जय जय नारायण नारायण हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
तेरि लीला सब से न्यारि न्यारि हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
हरि ॐ नमो नारायण
ॐ नमो नारायण ॥

बद्रि नारायण नारायण हरि हरि
बोलो नारायण नारायण हरि हरि
भजमन नारायण नारायण हरि हरि
जय जय नारायण नारायण हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
तेरि लीला सब से न्यारि न्यारि हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
हरि ॐ नमो नारायण
ॐ नमो नारायण ॥

ब्रह्म नारायण नारायण हरि हरि
जपो नारायण नारायण हरि हरि
भजो नारायण नारायण हरि हरि
जय जय नारायण नारायण हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
तेरि लीला सब से न्यारि न्यारि हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
हरि ॐ नमो नारायण
ॐ नमो नारायण ॥

चन्द्र नारायण नारायण हरि हरि
बोलो नारायण नारायण हरि हरि
भजमन नारायण नारायण हरि हरि
जय जय नारायण नारायण हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
तेरि लीला सब से न्यारि न्यारि हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
हरि ॐ नमो नारायण
ॐ नमो नारायण ॥

भक्तो के प्यारे हरि हरि
आधार हमारे हरि हरि
तनमन मे बस्य हो हरि हरि
कणकण मे बस्य हो हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
भजो नारायण नारायण हरि हरि
ॐ नमो नारायण
ॐ नमो नारायण ॥

गुरू नारायण नारायण हरि हरि
जय जय नारायण नारायण हरि हरि
तेरि छबि हे सुन्दर न्यारि न्यारि हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
जपो नारायण नारायण हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
पृथ्वी नारायण नारायण हरि हरि
जय जय नारायण नारायण हरि हरि
हम आए सहण तिहारिहरि हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि
बोलो नारायण नारायण हरि हरि
ॐ नमो नारायण
ॐ नमो नारायण ॥

शिव नारायण नारायण हरि हरि
जय जय नारायण नारायण हरि हरि
तेरि मूर्त मंगलकारि हरि हरि
शरणनो मे तिहारे लेलो हरि हरि हरि
श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि

दुर्गा सप्तशती (॥ अथ एकादशोऽध्यायः ॥)

दुर्गा सप्तशती

॥ अथ एकादशोऽध्यायः ॥
धऽयानम्
ॐ बालरविद्युतिमिन्दुकिरिटां तुङ्गकुचा नयनत्रययुक्ताम्।
स्मेरमुखीं वरदाङ्कुशपाशाभीतिकरां प्रभजे भुवनेशीम्॥
‘ॐ’ ऋषिरुवाच ॥१॥
देव्या हते तत्र महासुरेन्द्रे
सेन्द्राः सुरा वह्निपुरोगमास्ताम् ।
कात्यायनीं तुष्टुवुरिष्टलाभा-
द्विकासिवक्त्राब्जविकाशिताशाः ॥२॥
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य ।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥३॥
आधारभूता जगतस्त्वमेका
महीस्वरूपेण यतः स्थितासि ।
अपां स्वरूपस्थितया त्वयैत-
दाप्यायते कुत्स्नमलङ्घयवीर्ये ॥४॥
त्वं वैष्णवीशक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया ।
सम्मोहितं देवि समस्तमेत-
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः ॥५॥
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः
स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु ।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्
का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः ॥६॥
सर्वभूता यदा देवी भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी ।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः ॥७॥
सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते ।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥८॥
कलाकाष्ठादिरूपेण परिणामप्रदायिनि ।
विश्वस्योपरतौ शक्ते नारायणि नमोऽस्तु ते ॥९॥
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वाथर्साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥१०॥
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥११॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥१२॥
हंसयुक्तविमानस्थे ब्रह्माणीरूपधारिणि ।
कौशाम्भःक्षरिके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥१३॥
त्रिशूलचन्द्राहिधरे महावृषभवाहिनि ।
माहेश्वरीस्वरूपेण नारायणि नमोऽस्तुते ॥१४॥
मयूरकुक्कुटवृते महाशक्तिधरेऽनघे ।
कौमारीरूपसंस्थाने नारायणि नमोऽस्तु ते ॥१५॥
शङ्खचक्रगदाशार्ङ्गगृहीतपरमायुधे ।
प्रसीद वैष्णवीरूपे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥१६॥
गृहीतोग्रमहाचक्रे दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे ।
वराहरूपिणि शिवे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥१७॥
नृसिंहरूपेणोग्रेण हन्तुं दैत्यान् कृतोद्यमे ।
त्रैलोक्यत्राणसहिते नारायणि नमोऽस्तु ते ॥१८॥
किरीटिनि महावज्र सहस्रनयनोज्ज्वले ।
वृत्रप्राणहरे चैन्द्रि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥१९॥
शिवदूतीस्वरूपेण हतदैत्यमहाबले ।
घोररूपे महारावे नारायणि नमोऽस्तु ते ॥२०॥
दंष्ट्राकरालवदने शिरोमालाविभूषणे ।
चामुण्डे मुण्डमथने नारायणि नमोऽस्तु ते ॥२१॥
लक्ष्मि लज्जे महाविद्ये श्रद्धे पुष्टि स्वधे ध्रुवे ।
महारात्रि महाऽविद्ये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥२२॥
मेधे सरस्वति वरे भूति बाभ्रवि तामसि ।
नियते त्वं प्रसीदेशे नारायणि नमोऽस्तुते ॥२३॥
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वेशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥२४॥
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम् ।
पातु नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते ॥२५॥
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम् ।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते ॥२६॥
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ॥२७॥
असुरामृग्वसापङ्कचर्चिंतस्ते करोज्ज्वलः ।
शुभाय खड्गो भवतु चण्डिके त्वां नता वयम् ॥२८॥
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥२९॥
एतत्कृतं यत्कदनं त्वयाद्य
धर्मद्विषां देवि महासुराणाम् ।
रूपैरनेकैर्बहुधात्ममूर्तिम्
कृत्वाम्बिके तत्प्रकरोति कान्या ॥३०॥
विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपे-
ष्वाद्येषु वाक्येषु च का त्वदन्या ।
ममत्वगर्तेऽतिमहान्धकारे
विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम् ॥३१॥
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा
यत्रारयो दस्युबलानि यत्र ।
दावानलो यत्र तथाब्धिमद्ये
तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम् ॥३२॥
विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं
विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम् ।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति
विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः ॥३३॥
देवि प्रसीद परिपालय नोऽरि-
भीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः ।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु
उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान् ॥३४॥
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि ।
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव ॥३५॥
देव्युवाच ॥३६॥
वरदाहं सुरगणा वरं यन्मनसेच्छथ ।
तं वृणुध्वं प्रयच्छामि जगतामुपकारकम् ॥३७॥
देवा ऊचुः ॥३८॥
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥३९॥
देव्युवाच ॥४०॥
वैवस्वतेऽन्तरे प्राप्ते अष्टाविंशतिमे युगे ।
शुम्भो निशुम्भश्चैवान्यावुत्पत्स्येते महासुरौ ॥४१॥
नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भसम्भवा ।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी ॥४२॥
पुनरप्यतिरौद्रेण रूपेण पृथिवीतले ।
अवतीर्य हनिष्यामि वैप्रचित्तांस्तु दानवान् ॥४३॥
भक्षयन्त्याश्च तानुग्रान् वैप्रचितान् महासुरान् ।
रक्ता दन्ता भविष्यन्ति दाडिमीकुसुमोपमाः ॥४४॥
ततो मां देवताः स्वर्गे मर्त्यलोके च मानवाः ।
स्तुवन्तो व्याहरिष्यन्ति सततं रक्तदन्तिकाम् ॥४५॥
भूयश्च शतवार्षिक्यामनावृष्टयामनम्भसि ।
मुनिभिः संस्तुता भूमौ सम्भविष्यामययोनिजा ॥४६॥
ततः शतेन नेत्राणां निरीक्षिष्यामि यन्मुनीन् ।
कीर्तयिष्यन्ति मनुजाः शताक्षीमिति मां ततः ॥४७॥
ततोऽहमखिलं लोकमात्मदेहसमुद्भवैः ।
भरिष्यामि सुराः शाकैरावृष्टेः प्राणधारकैः ॥४८॥
शाकम्भरीति विख्यातिं तदा यास्याम्यहं भुवि ।
तत्रैव च वधिष्यामि दुर्गमाख्यं महासुरम् ॥४९॥
दुर्गादेवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति ।
पुनश्चाहं यदा भीमं रूपं कृत्वा हिमाचले ॥५०॥
रक्षांसि क्षययिष्यामि मुनीनां त्राणकारणात् ।
तदा मां मुनयः सर्वे स्तोष्यन्त्यानम्रमूर्तयः ॥५१॥
भीमादेवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति ।
यदारुणाख्यस्त्रैलोक्ये महाबाधां करिष्यति ॥५२॥
तदाऽहं भ्रामरं रूपं कृत्वासङ्खयेयषट्पदम् ।
त्रैलोक्यस्य हितार्थाय वधिष्यामि महासुरम् ॥५३॥
भ्रामरीति च मां लोकास्तदा स्तोष्यन्ति सर्वतः ।
इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ॥५४॥
तदा तदाऽवतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम् ॥ॐ॥५५॥
॥इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये नारायणिस्तुतिर्नाम एकादशोऽध्यायः ॥

Navagraha Stuti नवग्रहस्तोत्रम्

Navagraha Stuti by Vyas नवग्रहस्तोत्रम्
नवग्रहस्तोत्रम्

जपाकुसुमसंकाशं काश्र्यपेयं महाद्युतिम् ।
तमोरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोsस्ति दिवाकरम् ॥१॥
I pay homage to the Sun, the bright shining One, the maker of the day, enemy of darkness, destroyer of evils, resembling a Chinese rose, descendent of Kashyapa. [1]

दधिशङ्‍कतुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम् ।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम् ॥२॥
I pay homage to the Moon, Soma, who serves as an ornament on Shiva’s crown, who was born from the ocean of milk and whose color is that of curd, conch, or snow. [2]

धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् ।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥३॥
I pay homage to Mangala, the handsome youth with weapon in hand, born from mother earth, whose luster resembles the lightning in the sky. [3]

प्रियङ्गुकुलिकाश्र्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम् ।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् ॥४॥
I pay homage to Budha, son of the Moon, resembling the dark green bud of the priyangu flower, unrivaled in beauty, of calm and collected disposition. [4]

देवानां च ऋषीणां च गुरूं काञ्चनसंनिभम् ।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ॥५॥
I pay homage to Brhaspati, the guru of gods and rishis, who shines with golden luster, the embodiment of cosmic intelligence, the guiding light of the three worlds. [5]

हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूम् ।
सर्वशास्त्रप्रवक्तरं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ॥६॥
I pay homage to Shukra, descendant of Bhrigu, the supreme guru of the demons, the greatest expounder of all shastras, whose complexion resembles the white lotus, the jasmine flower, or snow. [6]
निलाञ्जनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
छायामार्तणडसम्भूतं तं नमामि शनैश्र्वरम् ॥७॥
I pay homage to Shani, the slowmoving, son of the Sun, born from Chaya
and Martanda, Yama’s elder brother, who is of dark complexion like the blue eye ointment. [7]

अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् ।
सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ॥८॥
I pay homage to Rahu, the half-bodied one, offspring of Simhika, possessing great strength, the sworn enemy of the Sun and Moon. [8]

पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् ।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ॥९॥
I pay homage to Ketu, one of the eleven Rudras, chief among planets and
stars, resembling the palasha flower, and of dreadful appearance. [9]

इति व्यासमुखोद् गीतं य: पठेत् सुसमाहित: ।
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशान्तिर्भविष्यति ॥१०॥
Thus ends the hymn of praise to the nine planets, born from Vyasa’s mouth as assembled by him. For one who chants this hymn, whether by day or night, all obstructions will melt away. [10]

नानारीनृपाणां च भवेद्दु:स्वप्ननाशनम् ।
ऐश्वर्यमतुलं तेषामारोग्यं पुष्टिवर्धनम् ॥११॥
Whether for men, women, or kings, it brings them destruction of evil, unrivaled sovereignty, freedom from disease, and growth of strength. [11]

ग्रहनक्षत्रजा: पीडास्तस्कराग्नसमुद्भवा: ।
ता: सर्वा: प्रशमं यान्ति व्यासो ब्रूते न संशय: ॥१२॥
All afflictions born of the planets, stars, thieves, or fire will be removed. Vyasa tells us that there is no doubt about this. [12]

॥ इति व्यासविरचितं नवग्रहस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

श्री दुर्गा चालीसा~~~

श्री दुर्गा चालीसा~~~

नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ।।

निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूं लोक फैली उजियारी ।।

शशि ललाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ।।

रुप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ।।

तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ।।

अन्नपूर्णा हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ।।

प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ।।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रहृ विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ।।

रुप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा ।।

धरा रुप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भई फाड़कर खम्बा ।।

रक्षा कर प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ।।

लक्ष्मी रुप धरो जग माही । श्री नारायण अंग समाही ।।

क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ।।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ।।

मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ।।

श्री भैरव तारा जग तारिणि । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ।।

केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ।।

कर में खप्पर खड्ग विराजे । जाको देख काल डर भाजे ।।

सोहे अस्त्र और तिरशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ।।

नगर कोटि में तुम्ही विराजत । तिहूं लोक में डंका बाजत ।।

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ।।

महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ।।

रुप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ।।

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ।।

अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ।।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर नारी ।।

प्रेम भक्ति से जो यश गावै । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे ।।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म-मरण ताको छुटि जाई ।।

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ।।

शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ।।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहू काल नहिं सुमिरो तुमको ।।

शक्ति रुप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछतायो ।।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ।।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ।।

मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ।।

आशा तृष्णा निपट सतवे । मोह मदादिक सब विनशावै ।।

शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी ।।

करौ कृपा हे मातु दयाला । ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला ।।

जब लगि जियौं दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ।।

दुर्गा चालीसा जो नित गावै । सब सुख भोग परम पद पावै ।।

देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।।

जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~

9~ सिद्धिदात्री~~~

9~ सिद्धिदात्री~~~


माँ सिद्धिदात्री की आराधना नवरात्र की नवमी के दिन की जाती है। इनकी आराधना से जातक को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। आज के युग में इतना कठिन तप तो कोई नहीं कर सकता लेकिन अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर कुछ तो माँ की कृपा का पात्र बनता ही है। वाकसिद्धि व शत्रु नाश हेतु मंत्र भी बता दें। इनका विधि-विधान से पूजन-जाप करने से निश्चित फल मिलता है।


नौवीं सिद्धि दात्री जग जाने~~~

जै सिद्धि दात्री मां तूं है सिद्धि की दाता~
तूं भक्तों की रक्षक तूं दासों की माता~~

तेरा नाम लेटे ही मिलती है सिद्धि~
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि~~

कठिन काम सिद्ध करती हो तुम~
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम~~

तेरी पूजा में तो न कोई विधि है~
तूं जगदम्बे दाती तूं सर्व सिद्धि है~~

रविवार को तेरा सुमिरन करे जो~
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो~~

तूं सब काज उसके करती हो पूरे~
कभी काम उसके रहे न अधूरे~~

तुम्हारी दया और तुम्हारी है माया~
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया~~

सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्य शाली~
जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली~~

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा~
महा नन्दा मंदिर में है वास तेरा~~

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता~
चमन है सवाली तूं जिसकी दाता~~


जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~

8~ महागौरी ~~~

8~ महागौरी ~~~

देवी का आठवाँ रूप माँ गौरी है। इनका अष्टमी के दिन पूजन का विधान है। इनकी पूजा सारा संसार करता है। पूजन करने से समस्त पापों का क्षय होकर कांति बढ़ती है। सुख में वृद्धि होती है, शत्रु-शमन होता है।


आठवी महांगौरी जगजाया~~~

जै माहांगौरी जगत की माया~
जै उमा भवानी जय महांमाया~~

हरिद्वार कनखल के पासा~
महांगौरी तेरा वहा निवासा~~

चन्द्रकली और ममता अम्बे~
जै शक्ति जै जै मां जगदम्बे~~

भीमा देवी विमला माता~
कौशकी देवी जग विख्याता~~

हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा~
महांकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा~~

सती सत हवन कुण्ड में था जलाया~
उसी धुएं ने रूप काली बनाया~~

बना धर्म सिंह जो सवारी में आया~
तो संकर ने त्रिशूल अपना दिखाया~~

तभी मां ने महांगौरी नाम पाया~
शरण आने वाले का संकट मिटाया~~

शनिवार को तेरी पूजा जो करता~
मां बिगङा हुआ काम उसका सुधरता~~


चमन बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो~
महांगौरी मां तेरी हरदम ही जय हो~~


जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~

7~ कालरात्रि~~~

7~ कालरात्रि~~~

नवरात्रि की सप्तमी के दिन माँ कालरात्रि की आराधना का विधान है। इनकी पूजा-अर्चना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है व दुश्मनों का नाश होता है, तेज बढ़ता है।

सातवीं कालरात्रि महांमाया~~~

कालरात्रि जै जै महाकाली~
काल के मुंह से बचाने वाली~~

दुष्ट संघारण नाम तुम्हारा~
महां चण्डी तेरा अवतारा~~

पृथ्वी और आकाश पे सारा~
महाकाली है तेरा पसारा~~

खंडा खप्पर रखने वाली~
दुष्टों का लहू चखने वाली~~

कलकत्ता स्थान तुम्हारा~
सब जगह देखूं तेरा नज़ारा~~

सभी देवता और नर नारी~
गांवे सभी स्तुति तुम्हारी~~

रक्तदन्ता और अन्न्पूर्णा~
कृपा करे तो कोई भी दुख न~~

न कोई चिन्ता न रहे बिमारी~
न कोई गम न संकट भारी~~

उस पर कभी कष्ट न आवे~
महा काली मां जिसे बचावें~~

तूं भी चमन प्रेम से कह~
कालरात्रि मां तेरी जय~~~

जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~

6~कात्यायनी~~~

6~कात्यायनी~~~

माँ का छठा रूप कात्यायनी है। छठे दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है।

छटी कात्यायनी विख्याता~~~

जै अम्बे जै जै कात्यायनी~
जै जगदाता जग की महारानी~~

बैजनाथ स्थान तुम्हारा~
वहां वरदाती नाम पुकारा~~

कई नाम है कई धाम है~
यह स्थान भी तो सुखधाम है~~

हर मंदिर में जोत तुम्हारी~
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी~~

हर जगह उत्सव होते रहते~
हर मंदिर में भक्त है कहते~~

कात्यायनी रक्षक काया की~
ग्रन्थी काटे मोह माया की~~

झूठे मोह से छुङाने वाली~
अपना नाम जपाने वाली~~

ब्रहस्पतिवार को पूजा करियों~
ध्यान कात्यायनी का धरियों~~

हर संकट को दूर करेगी~
भण्डारे भरपूर करेगी~~

जो भी मां को चमन पुकारें~
कात्यायनी सब कष्ट निवारे~~

जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~

5~ स्कंदमाता~~~

5~ स्कंदमाता~~~

नवरात्रि का पाँचवाँ दिन आपकी उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी है। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती है।


पांचवी देवी स्कंद माता~~~

जै तेरी हो स्कंद माता~
पांचवा नाम तुम्हारा आता~~

सब के मन की जानन हारी~
जग जननी सब की महतारी~~

तेरी जोत जलाती रहूं मैं~
हर दम तुम्हे ध्याती रहूं मैं~~

कई नामों से तुझे पुकारा~
मुझे एक है तेरा सहारा~~

कहीं पहाङों पर है डेरा~
कई शहरों में तेरा बसेरा~~

हर मंदिर में तेरे नज़ारे~
गुण गाए तेरे भक्त प्यारे~~

भक्ति अपनी मुझे दिला दो~
शक्ति मेरी बिगङी बना दो~~

इन्द्र आदि देवता मिल सारे~
करें पुकार तुम्हारे द्वारें~~

दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आये~
तूं ही खण्डा हाथ उठाये~~

दासों को सदा बचाने आई~
चमन की आस पुजाने आई~~

जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~

4. कुष्मांडा~~~

4. कुष्मांडा~~~

चतुर्थी के दिन माँ कुष्मांडा की आराधना की जाती है। इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है।


चतुर्थ " कुषमांडा सुखधाम"~~~

कुषमांडा जै जग सुखदानी~
मुझ पर दया करो महांरानी~~

पिंगला ज्वालामुखी निराली~
शाकम्बरी मां भोली भाली~~

लाखों नाम निराले तेरे~
भक्त कई मतवाले तेरे~~

भीमा पर्वत पर है डेरा~
स्वीकारो प्रणाम ये मेरे~~

सब की सुनती हो जगदम्बे~
सुख पहुंचाती हो मां अम्बे~~

तेरे दर्शन का मैं प्यासा~
पूर्ण कर दो मेरी आशा~~

मां के मन में ममता भारी~
क्यों न सुने अरज हमारी~~

तेरे दर पर किया है डेरा~
दूर करो मां संकट मेरा~~

मेरे कारज पूरे कर दो~
मेरे तुम भण्डारे भर दो~~

तेरा दास तुझे ही ध्याए~
चमन तेरे दर शीश झुकाए~~

जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~

3. चंद्रघंटा~~~

3. चंद्रघंटा~~~

माँ दुर्गा का तीसरा स्वरूप चंद्रघंटा है। इनकी आराधना तृतीया को की जाती है। इनकी उपासना से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। वीरता के गुणों में वृद्धि होती है। स्वर में दिव्य अलौकिक माधुर्य का समावेश होता है, आकर्षण बढ़ता है|



तीसरी 'चंद्र घंटा शुभ नाम'~~~

जय मां चंद्र घंटा शुख धाम~
पूर्ण कीजो मेरे काम~~

चन्द्र समान तूं शीतल दाती~
चन्द्र तेज किरणों में समाती~~

क्रोध को शांत बनाने वाली~
मीठे बोल सिखाने वाली~~

मन की मालक मन भाती हो~
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो~~

सुन्दर भाव को लाने वाली~
हर संकट से बचाने वाली~~

हर बुधवार जो तुम्हे ध्याये~
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाये~~

मूर्ति चन्द्र आकार बनाए~
सन्मुख घी की जोत जलाए~~

शीश झुका कहे मन की बात~
पूर्ण आस करो जग दाता~~

कान्ची पुर स्थान तुम्हारा~
करनाटिका में मान तुम्हारा~~

नाम तेरा रटू महारानी~
चमन की रक्षा करो भवानी~~

जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~

2. ब्रह्मचारिणी~~~

2. ब्रह्मचारिणी~~~

माँ दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। माँ दुर्गा का यह रूप भक्तों और साधकों को अनंत कोटि फल प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की भावना जागृत होती है।


दूसरी ब्रह्मचारिणी मन भावे~~~

जै अम्बे ब्रह्मचारिणी माता~
जै चतुराणन प्रिय सुख दाता~~

ब्रहमा जी के मन भाती हो~
ज्ञान सभी को सिखलाती हो~~

ब्रहम मंत्र है जाप तुम्हारा~
जिस को जपे सकल संसारा~~

जै गायत्री वेद की माता~
जो जन निस दिन तुम्हे ध्याता~~

कमी कोई रहने न पाये~
कोई भी दुःख सहने न पाये~~

उसकी विरती रहे ठिकाने~
जो तेरी महिमा को जाने~~

रूद्राक्ष की माला ले कर~
जपे जो मंत्र श्रद्धा लेकर~~

आलस छोङ करे गुणगान~
मां तुम उसको सुख पहुंचाना~~

ब्रह्मचारिणी तेरो नाम~
पूर्ण करो सब मेरे काम~~

चमन तेरे चरणों का पुजारी~
रखना लाज मेरी महतारी~~

जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~

शैलपुत्री~~~

1. शैलपुत्री~~~

माँ दुर्गा का प्रथम रूप है शैलपुत्री। पर्वतराज हिमालय के यहाँ जन्म होने से इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। नवरात्र की प्रथम तिथि को शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इनके पूजन से भक्त सदा धनधान्य से परिपूर्ण रहते हैं।


पहली शैलपुत्री कहलावे~~~

शैलपुत्री मां बैल असवार~
करें देवता जय जय कार~~

शिव-शंकर की प्रिय भवानी~
तेरी महिमा किसी न जानी~~

पार्वती तूं उमा कहलावे~
जो तुझे सिमरे सो सुख पावें~~

रिद्धि सिद्धि परवान करे तूं~
दया करे धनवान करे तूं~~

सोमवार को शिव संग प्यारी~
आरती जिसने तेरी उतारी~~

उसकी सगरी आस पुजा दों~
सगरे दुःख तकलीफ मिटा दों~~

घी का सुंदर दीप जला के~
गोला गरी का भोग लगा के~~

श्रद्धा भाव से मंत्र जायें~
प्रेम सहित फिर शीश झुकायें~

जय गिरराज किशोरी अम्बें~
शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बें~~

मनोकामना पूर्ण कर दो~
चमन सदा सुख संम्पति भर दो~~

जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~
जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~जय माता दी~~~

Navratri~~~नवरात्रि~~~

शक्ति से शक्ति की कामना का पर्व~~~

शक्ति की आराधना का पर्व है नवरात्रि। शक्ति के बिना शिव भी शव के समान हैं। इस शक्ति से समूचा ब्रह्मांड संचालित होता है। शक्ति की आराधना के यह नौ दिन अत्यंपत महत्वनपूर्ण होते हैं। कहते हैं कि इन नौ दिनों में ब्रह्मांड की समूची शक्तियाँ जाग्रत हो जाती हैं। इसी शक्ति से विश्वक का सृजन हुआ, यही शक्ति दुष्टों का संहार करती है और इसी शक्ति की आराधना का पर्व है नवरात्रि।

विविध परंपराएँ~~~

नवरात्रि अर्थात महाशक्ति की आराधना का पर्व। नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों की तिथिवार पूजा-अर्चना की जाती है। देवी दुर्गा के यह नौ रूप हैं- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांाडा, स्कंकदमाता, कात्याययनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।

!! श्री दुर्गा कवच !!

!! श्री दुर्गा कवच !!
ऋषि मर्कंडे ने पूछा जभी !
दया करके ब्रह्माजी बोले तभी !!
के जो गुप्त मंत्र है संसार में !
हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में !!
हर इक का जो कार सकता उपकार है !
जिषे जपने से बेडा ही पर है !!
पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का !
जो हर काम पुरा करे सवाली का !!
सुनो मर्कंडे मैं समझाता हूँ !
मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ !!
कवच कि मैं सुन्दर चोपाई बना !
जो अत्यंत हैं गुप्त देयुं बता !!
नव दुर्गा का कवच यह, पढे जो मन चित लाये !
उष पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये !!
कहो जय जय जय महारानी कि !
जय दुर्गा अष्ट भवानी कि !!
पहली शैलपुत्री कहलावे !
दूसरी भ्रम्चारनी मन भावे !!
तीसरी चंद्रघंता शुभ नाम !
चौथी कुश्मंदा सुखधाम !!
पांचवी देवी अस्कंद माता !
छाती कात्यायनी विख्याता !!
सातवी कालरात्रि महामाया !
आठवी महागौरी जग जाया !!
नौवी सिद्धिरात्रि जग जाने !
नव दुर्गा के नाम बखाने !!
महासंकत में बन में रण में !
रोग कोई उपजे निज तन में !!
महाविपति व्योहार में !
मान चाहे जो राज दरबार में !!
शक्ति कवच को सुने सुनाये !
मन कामना सिद्ध नर पाए !!
चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ असवार !
बैल चढी महेश्वरी, हाथ लिए हथ्यार !!
कहो जय जय जय महारानी कि !
जय दुर्गा अष्ट भवानी कि !!
हंस सवारी बरही कि !
मोर चढी दुर्गा कुमारी !!
लक्ष्मी देवी कमल आसीना !
ब्राह्मी हंस चढी ले विना !!
इश्वरी सदा बैल असवारी !
भक्तन कि करती रखवारी !!
शंख चक्र शक्ति त्रिशुला !
हल मुसल कर कमल के फुला !!
दैत्य नाश करने के कारन !
रुप अनेक किन हैं धारण !!
बार बार चरनन सिर नून !
जगदम्बे के गुण को गाऊँ !!
कष्ट निवारण बलशाली माँ !
दुष्ट संहरण महाकाली माँ !!
कोटी कोटी माता प्रणाम !
पुरान कि जो मेरे काम !!
दया करो बल्शालिनी, दस के कष्ट मिटाओ !
चमन कि रक्षा करो सदा, सिंह चढी माँ आओ !!
कहो जय जय जय महारानी कि !
जय दुर्गा अष्ट भवानी कि !!
अग्नि से अग्नि देवता !
पुराभ दिशा में येंदरी !!
दक्षिण में बरही मेरी !
नैरित्य माँ खडग धारिणी !!
वायु से माँ मृग वाहिनी !
पश्चिम में देवी वरिनी !!
उत्तर में माँ कौमरीजी !
ऐसन में शूल धरीजी !!
ब्रहामानी माता अर्श पर !
माँ वैष्णवी इश फर्श पर !!
चामुंडा दश दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो !
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!
सन्मुख मेरे देवी जिया !
पचे हो माता विजैया !!
अजीता कड़ी बाएं मेरे !
अपराजिता दायें मेरे !!
उद्योतिनी माँ शिखा कि !
माँ उमा देवी सिर कि ही !!
मालाधारी ललाट कि, और ब्रकुती कि माँ यश्यास्विनी !
ब्रकुती के मध्य त्रय्नेत्र, यम् घंटा दोनो नासिका !!
कलि कपोलों कि कर्ण, मूलों कि माता शंकरी !
नासिका में अंश अपना, माँ सुगंध तुम धरो !!
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!
ऊपर वे निचे होतों कि !
माँ चुर्च्का अमृत कलि !!
जीभा कि माता सरस्वती !
दांतों कि कुमारी सटी !!
इश कुंठ कि माँ चंदिका !
और चित्रघंता घंटी कि !!
कामाक्षी माँ थोडी कि !
माँ मंगला इश बनी कि !!
ग्रीवा कि भद्रकाली माँ !
रक्षा करे बलशाली माँ !!
दोनो भुजाओं कि मेरे, रक्षा करे धनु धरनी !
दो हाथों के सब अंगों कि, रक्षा करे जग तरनी !!
शुलेश्वरी, कुलेश्वरी, महादेवी शोक विनाशानी !
छाती स्तनों और कन्धों कि, रक्षा करे जग वासिनी !!
हृदय उदार और नाभि कि, कटी भाग के सब अंग कि !
गुम्हेश्वरी माँ पूतना, जग जननी श्यामा रंग कि !!
घुटनों जन्घून कि करे, रक्षा वो विंध्यवासिनी !
तुख्नों वे पावों कि करे, रक्षा वो शिव कि दस्नी !!
रक्त मांस और हदियों से, जो बना शारीर !
आतों और पिट वाट में, भरा अग्ना और नीर !!
बल बूढी अंहकार और, प्रण अपन समन !
सैट राज तम के गुणों में, फँसी है यह जान !!
धर अनेकों रुप ही, रक्षा करियो आन !
तेरी कृपा से ही माँ, चमन का है कल्याण !!
आयु यश और कीर्ति धन, सम्पति परिवार !
ब्रह्मणि और लक्ष्मी, पार्वती जग तर !!
विद्या दे माँ सरस्वती, सब सुखों कि मूल !
दुष्टों से रक्षा करो, हाथ लिए त्रिशूल !!
भैरवी मेरी भार्या कि, रक्षा करो हमेश !
मान राज दरबार में, देवें सदा नरेश !!
यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये !
कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाए !!
है जग जननी कर दया, इतना दो वरदान !
लिखा तुम्हारा कवच यह, पढे जो निश्चय मान !!
मन वांछित फल पाए वो, मंगल मोड़ बसाए !
कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर आये !!
ब्रह्माजी बोले सुनो मर्कंडे !
यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया !!
रह आज तक था गुप्त भेद सारा !
जगत कि भलाई को मैंने बताया !!
सभी शक्तियां जग कि करके एकत्रित !
है मिति कि देह को इह्से जो पहनाया !!
चमन जिश्ने श्राध से इसको पढ़ जो !
सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया !!
जो संसार में अपने मंगल को चाहे !
तो हरदम यही कवच गता चला जा !!
बियाबान जंगल दिशाओं दशों में !
तू शक्ति कि जय जय मनाता चला जा !!
तू जल में तू थल में तू अग्नि पवन में !
कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा !!
निडर हो विचार मन जहाँ तेरा चाहे !
चमन कदम आगे बढ़ता चला जा !!
तेरा मान धन धम इश्से बढेगा !
तू श्राध से दुर्गा कवच को जो गए !!
यही मंत्र यन्त्र यही तंत्र तेरा !
यही तेरे सिर से ही संकट हटायें !!
यही भुत और प्रेत के भय का नाशक !
यही कवच श्राध वे भक्ति भाध्ये !!
इशे नित्प्रती चमन श्राध से पढ़ कर !
जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए !!
इश स्तुति के पथ से पहले कवच पढे !
कृपा से आधी भवानी कि, बल और बूढी बढे !!
श्राध से जपता रहे, जगदम्बे का नाम !
सुख भोगे संसार में, अंत मुक्ति सुखधाम !!
कृपा करो मातेश्वरी, बालक चमन नादाँ !
तेरे दर पर आ गिरा, करो मैया कल्याण !!
!! जय माता दी !!

Thursday, May 6, 2010

कब क्या न खाएं?

कब क्या न खाएं?

भादों और सावन में दही और मठा नहीं खाना चाहिए।
कार्तिक मास में करेला और बैगन नहीं खाना चाहिए
श्रावण में हरी सब्जियां (जैसे पालक) नहीं खाना चाहिए , (क्योंकि उनमें जंतु होते हैं)
भाद्रपद में दही नहीं खाना चाहिए
आश्विन में दूध और कार्तिक में दाल नहीं खाना चाहिए।
सूर्यास्त के बाद तिल की कोइ भी वास्तु का प्रयोग नहीं करनी चाहिए।
अमावस्या , रविवार और पूनम को तिल का तेल हानिकारक होता है
रविवार को तुलसी, अदरक, लाल मिर्च और लाल सब्जी नहीं खाना चाहिए।
आँवला रविवार, शुक्रवार और षष्ठी को नहीं खाना चाहिए।·
तृतीया तिथि को परवल नहीं खाना चाहिए (तृतीया को परवल खाने से शत्रुओं की वृद्धि होती है)·
चतुर्थी को मूली नहीं खाना चाहिए (चतुर्थी को मूली खाने से धन-नाश होता है)
अष्टमी को नारियल नहीं खाना चाहिए (अष्टमी नारियल खाने से बुद्धि कमजोर होगा, रातको नारियल नहीं खाना चाहिए)
त्रयोदशी को बैगन नहीं खाना चाहिए ( त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र नाश या पुत्र से दुख मिलता है)·
श्रावण में हरड़ और कार्तिक में मूली स्वास्थ्य के लिए अच्छा है (श्रावण में जठराग्नि कम होने से पेट के बीमारियाँ ज्यादा होती हैं, इसलिए हरड़ खाना चाहिए)
भाद्रपद में दूध या दूध से बनी हुई खीर स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, इससे शरीर का पित्त निकल जाता है

Wednesday, May 5, 2010

Meaning of Birth Chart

Meaning of Birth Chart
There are 12 House in birth chart and each house gives information about life,when new one come in this world that time the star position count by the seeing sky position.and after counting stars we find house positions.Each house gives reading like


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The 1st house rules the life of man, the head and face of man and the physical body, health, accidents, birth, arrivals, the present and today, the condition of a vehicle one is in and new ventures.The 1st house rules the native, plaintiff, fellow travelers, newcomers, arrivals, great-grandchildren and grandparents. Beginnings, early environment, personality, physical body.
पहला भाव आदमी की जिन्दगी पर राज करता है,आदमी के सिर और चेहरे के बारे में बताता है,उसका शरीर कैसा बना है,इसका ज्ञान देता है,स्वास्थ्य के बारे में जानना है तो पहले भाव को जानो,कौन सा एक्सीडेंट कब होना है,उस एक्सीडेंट से किस अंग को क्षति होगी आदि का ज्ञान भी पहला भाव देता है,इसके अलावा जन्म का ज्ञान भी पहले भाव से ही मिलता है,प्रश्न कुन्डली के द्वारा नये आने वाले की सूचना मिलती है,वर्तमान में क्या चल रहा है,आज क्या हो रहा है,इसका ज्ञान भी पहला भाव देता है। आजकल नई नई गाडियों का जमाना है,कौन सा माडल बाजार में आने वाला है,नये नये घरों की बनावट का जमाना है,किस प्रकार की तकनीक भवन निर्माण कर्ता प्रयोग में लेने वाले है,उसका भी ज्ञान पहला भाव ही देता है,नई घटना और नये समाचार के लिये भी पहला भाव ही जिम्मेदार माना जाता है,टीवी चैनल पर किस प्रकार का समाचार प्रकाशित होने वाला है,किस घटना और कारण का विवेचन होना है,का ज्ञान भी पहला भाव ही देता है। जातक की सम्पूर्ण लाइफ़ का मालिक पहला भाव ही माना जाता है,प्लैनटिफ़ और साथ चलने वाले सहयात्रियों के बारे में ज्ञान भी पहले भाव से मिलता है। पडपोते का ज्ञान और दादा दादी का ज्ञान भी पहले भाव से मिलता है,कार्य की शुरुआत किसी क्षेत्र विशेष की प्रारम्भिक अवस्था पहले भाव से ही मिलती है,प्राकृतिक आपदा और मौसम की खुशनुमा बहार का ज्ञान भी पहला भाव ही देता है। व्यक्ति का कैसा व्यक्तित्व है,भौतिक शरीर या भौतिक वस्तु की बनावट पहले भाव से ही मिलती है।


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The 2nd house rules the person's estate, fortune, money, moveable property, everything the person owns, securities, gain, investment,the future and tomorrow.The 2nd house rules ancestors, person's banker, and investors.Finance, freedom given by money, self-worth, talents.
दूसरा भाव व्यक्ति की जायदाद पर राज करता है,इस भाव के द्वारा भाग्य धन और चलायमान सम्पत्ति के बारे में ज्ञान मिलता है,जो भी व्यक्ति के पास हो उसका ज्ञान दूसरा भाव देता है,कपडा घडी चैन कैमरा मोबाइल पेन आदि भी इसी श्रेणी मे आते है। सुरक्षा के भाव को भी दूसरे भाव से जाना जाता है,कमाई का प्रकार भी दूसरे भाव से ही मिलता है,कार्य के प्रयुक्त पूंजी का ज्ञान भी दूसरे भाव से मिलता है,कल क्या होगा इसका भाव भी दूसरा भाव देता है,जायदाद के प्रति सोच भी इसी भाव से मिलती है,व्यक्ति की बैंक के बारे में ज्ञान भी दूसरा भाव देता है,जहाँ पर व्यक्ति अपना धन सुरक्षा के लिये रखता है वह किस प्रकार का है,जमा धन को वह देगा या जमा धन को वह हजम कर जायेगा आदि बाते भी इसी भाव से जानी जाती है,जो स्वतंत्रता धन के द्वारा मिलती है उसका ज्ञान भी इसी भाव से मिलता है,अपने खुद के प्रयासों से धन के प्रति किये जाने वाले कामो की तरफ़ भी यही भाव इशारा करता है,और खुद के द्वारा धन कमाने के लिये जो भी कारक प्रयोग में किये जाते है उनके बारे में भी इसी भाव के द्वारा जानकारी प्राप्त की जाती है।


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The 3rd house rules communication, rumors, short journeys, exams,letters, trips, visits, messages, deliveries, writing, schooling, gossip and reports.The 3rd house rules brothers, sisters, cousins, neighbors, gossippers,visitors, teachers, deliverymen, tradesmen, court reporters and postmen.Lower mind, speech, communications, short journeys, brothers and sisters.


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The 4th house rules land, houses, your roots, hidden treasure, mislaid articles, domestic affairs, inheritances, farms, wells, mines, property and graves.The 4th house rules the father, mother-in-law, family, farmer, gardener, jurymen, grave-diggers, builders, ranchers and miners. The home, the father, conditions at the end of life, lands, mines.


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The 5th house rules banquets, bars, taverns, plays, community property, speculation, betting and pregnancy.The 5th house rules children, pregnant women, messengers, speculators,gamblers and entertainers.Pleasure, education, children, publications, speculation.


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The 6th house rules sickness (quality and cause), disease (long or short), distress, voluntary labor, civil service work, animal husbandry and caretaking.The 6th house rules uncles and aunts from father, tenants, farmers, employees, inferiors, lodgers, pets, small animals, nurses, dentists, healers and those in civil service.Service, relations with employers and employees, health and sickness.


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The 7th house rules marriage, partnerships, lawsuits, war, quarrels,divorce, agencies, removals, separation, settlements, contracts, agreements, open enemies and theft.The 7th house rules the other person (unrelated), public enemies, thief, spouse, partner, astrologer, doctor, agent, fugitive, the public, opponent, defendant, niece and nephew.Partnership, marriage, the public, open enemies.


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The 8th house rules the estate of the deceased, wills, legacies, dowry of the wife, death (quality and nature), alimony, gifts, fees, tips, taxes, escrows, debts, bankruptcy, losses, injury and surgery.The 8th house rules the heir of the deceased, the Grim Reaper, pall bearers, coroners, undertakers, surgeons and tax collectors.Legacies, cause of death, occult tragedy, regeneration, taxes.


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The 9th house rules voyages, foreign countries and interests, visions, dreams, books, learning, absent persons, legal issues, education, long journeys, ceremonies, rituals, legalizing, publishing, science, parades, education and religion.The 9th house rules the clergy, religious men, in-laws, strangers,aliens, travelers, explorers, insurance adjusters, publishers and grandchildren.Higher mind, religion, law, long journeys, philosophy.


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The 10th house rules honor, preferment, dignity, career, profession, kingdoms, authority, fate, fame, notoriety, business, employment, credit, reputation, conviction and execution.The 10th house rules the mother, kings, presidents, judges, employers, guardians, rulers, superiors, professionals and executives.Profession, standing in community, the mother.


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The 11th house rules hope, trust, confidence, wishes, memberships,deaths in the family, unbonded relationships, liberty, legislation and regulation.The 11th house rules friends, advisors, club members, son and daughter-in-laws and legislators.Friends, hopes, wishes, groups.


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The 12th house rules large animals, sorrow, tribulations,imprisonment, affliction, self-undoing, widowhood, grief, funerals,exile, seclusion, detention, bribery, subversion, the past and yesterday, murder, suicide and kidnapping.The 12th house rules uncles and aunts from the mother, witches, secret enemies, those on relief, widows, orphans, jailers, guards, keepers,assassins, kidnappers, informers, nuns, monks, recluses, clandestine associates.Paying debts of destiny, limitations, institutions for care of unfortunates, jails, secrecy, mysticism.